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सबरीमाला मामले पर अलका लांबा बोलीं- धर्म के ठेकेदारों हम से दूर रहो

अलका लांबा

अलका लांबा

नई दिल्ली। सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के विषय में फैसले को लेकर दिल्ली कांग्रेस की नेता अलका लांबा ने अपनी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से ट्वीट कर लिखा है कि यह मेरे और मेरे भगवान के बीच का मामला है, धर्म के ठेकेदारों हम से दूर रहो।

https://twitter.com/LambaAlka/status/1194849979476541441

अलका लांबा ने अपने ट्वीट में लिखा है कि मेरा भगवान अपने दरवाजे मेरे (महिलाओं) लिए तो क्या कभी किसी के लिए भी बंद नहीं कर सकता है, वो किसी में भेदभाव करना नहीं जानता है, उसके लिए तो सब बराबर है, सामान है।

साल 2018 में इस धार्मिक प्रथा को बताया असंवैधानिक

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने केरल के प्रसिद्ध सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश संबंधित मामले पर सुनवाई करते हुए इसे बड़ी बेंच को सौंप दिया है। वहीं कोर्ट ने 28 सितंबर 2018 के फैसले को बरकरार रखते हुए मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है।

सुप्रीम कोर्ट ने 28 सितंबर 2018 को 4 के मुकाबले एक के बहुमत से फैसला दिया था जिसमें केरल के सुप्रसिद्ध अयप्पा मंदिर में 10 वर्ष से 50 की आयुवर्ग की लड़कियों एवं महिलाओं के प्रवेश पर लगी रोक को हटा दिया गया था। फैसले में शीर्ष अदालत ने सदियों से चली आ रही इस धार्मिक प्रथा को गैरकानूनी और असंवैधानिक बताया था।

सबरीमला ही नहीं कई धर्मों में है ऐसी प्रथा

सुप्रीम कोर्ट ने सबरीमला मामले में दिए गए उसके फैसले की समीक्षा की मांग करने वाली याचिकाएं सात न्यायाधीशों की वृहद पीठ के पास भेजते हुए गुरुवार को कहा कि धार्मिक स्थलों में महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध केवल सबरीमला तक ही सीमित नहीं है बल्कि अन्य धर्मों में भी ऐसा है।

प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि ‘धर्म और आस्था पर बहस फिर से शुरू करना चाहते हैं याचिकाकर्ता’

प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने अपनी ओर से तथा न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति इन्दु मल्होत्रा की ओर से फैसला पढ़ा। इसमें उन्होंने कहा कि सबरीमला, मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश और दाऊदी बोहरा समुदाय में महिलाओं में खतना जैसे धार्मिक मुद्दों पर फैसला वृहद पीठ लेगी। प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि याचिकाकर्ता धर्म और आस्था पर बहस फिर से शुरू करना चाहते हैं। सबरीमला मामले पर फैसले में न्यायमूर्ति आरएफ नरिमन और डीवाई चंद्रचूड़ की राय अलग थी।

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