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550वां प्रकाशोत्सव : गुरुनानक जी ने ऊंच-नीच की बुराई को खत्म कर सबसे पहले की थी लंगर की शुरुआत

गुरु नानक

गुरुनानक जी की 550 वीं जयंती जन्मदिन पर पूरे देश में हर्षोल्लास का माहौल है। श्री गुरु नानक देव जी ने दुनिया को ‘नाम जपो, किरत करो, वंड छको’ का संदेश देकर समाज में भाईचारक सांझ को मजबूत किया और एक नए युग की शुरुआत की थी। उन्होंने समाज में व्याप्त ऊंच-नीच की बुराई को खत्म करने और भाईचारक सांझ के प्रतीक के रूप में सबसे पहले लंगर की शुरुआत की थी।

गुरुनानक जी का जन्म 1469 में पाकिस्तान के श्री ननकाना साहिब में हुआ था। हर वर्ष की कार्तिक पूर्णिमा के दिन गुरुनानक जी का जन्मोत्सव प्रकाश पर्व के रूप में हर्षोल्लास से मनाया जाता है। श्री ननकाणा साहिब में प्रसिद्ध गुरुद्वारा श्री ननकाना साहिब भी है। इसका निर्माण महाराजा रणजीत सिंह ने करवाया था।

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गुरमति समागम आयोजित कर गुरु जी की बाणी और उनकी शिक्षाओं से संगत को निहाल किया जाता है। गुरु नानक नाम लेवा संगत उन्हें बाबा नानक और नानकशाह फकीर भी कहती है। गुरु नानक देव जी ने भारत ही नहीं अफगानिस्तान, ईरान और अरब देशों में भी जाकर लोगों को पाखंडवाद से दूर रहने की शिक्षा दी। उन्होंने अपना पूरा जीवन मानवता की सेवा में लगा दिया।

प्रकाशपर्व पर गुरुदारों में होती है भव्य सजावट

प्रकाशपर्व के दिन जहां गुरुद्वारों में भव्य सजावट की जाती है, अखंड पाठ साहिब के भोग डाले जाते हैं और लंगर बरताए जाते हैं। इससे पहले प्रभातफेरियों निकालकर गुरु जी के आगमन पर्व की तैयारियां शुरू कर दी जाती हैं। संगत सतनाम श्री वाहेगुरु और बाणी का जाप करते हुए चलती है। शहरों में भव्य नगर कीर्तन निकाले जाते हैं। धार्मिक दीवान सजाए जाते हैं और दिन-रात शबद कीर्तन किया जाता है।

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550वे प्रकाशपर्व में क्या है ख़ास

12 नवंबर (कार्तिक पूर्णिमा) को श्री गुरु नानक देव जी का 550वां प्रकाशपर्व है। भारत पाकिस्तान बंटवारे के 72 वर्ष बाद पाकिस्तान स्थित गुरुद्वारा श्री करतारपुर साहिब को भारत की संगत के लिए खोल दिया गया है। गुरुद्वारा श्री करतारपुर साहिब वह स्थान है जहां गुरु नानक जी ने अपने जीवन के अंतिम 18 वर्ष बिताए थे। वर्ष 1539 में वह ज्योति जोत समा गए थे।

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